एक खुला ख़त बेटी के नाम...


ये ख़त लिखा है बेटी तुमको
इसे समझ धरोहर रख लेना
जब कठिनाई हो जीवन में
कुछ अनुभव मेरे पढ़ लेना

ज़मीन जायदाद, पैसे रुपये को
एक हद तक ही प्रभुता देना
एक अच्छे इंसान के आगे है
फीका दुनिया का हर गहना


जो आज किसी के लिए करोगी
कल लौटेगा तुम तक चार गुना
हर दीन-दुखी के लिए हमेशा
अंतःकरण में रखना तुम करुणा

बड़े बुजुर्गों को अपने
प्रेम सम्मान सदा देना
सेवा उनकी करके उनसे
ढेरों आशीष कमा लेना

दुआओं में ताक़त होती है
बद्दुआ किसी की मत लेना
इसी जीवन में सबको अपनी
करनी का फल, पड़ता है भुगतना

गर झुककर रिश्ते बचा सको
तो झुकने में बिलकुल न झिझकना
नाक को ऊँचा रखने से
कभी-कभी ऊँचा है झुकना

पर आत्म-सम्मान या स्वाभिमान पर
चोट कोई तुम मत सहना
अपने हक़ के लिए हमेशा
डट कर तुम लड़ती रहना

हैं बहुत बेईमान दुनिया में
खुद का इमान बचाये रखना
ईमान बेच कर मिला हो जो
मोल उसका नहीं है कौड़ी जितना

दुःख तकलीफें जितनी हों
हौसले को हरदम बुलंद रखना
मुश्किल हो रस्ता, चलती रहना
मंज़िल से पहले तुम मत रुकना

विपदा कभी न आये तुम पर
जो आये तो हिम्मत से सहना
आश्रित हैं तुम पर जो, उनकी
ताक़त का स्तम्भ बनी तुम रहना

मैं रहूँ, ना रहूँ कहने को
ये बातें मेरी संग रखना
गौरव मेरा अब तुमसे है
तुम इसकी लाज बचाये रखना

 ' पारुल '

2 comments:

  1. Thanks for sharing Jayati ji. Do like my page on fb for more updates facebook.com\parul.chaturvedi.kshitij.

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