उसके हिनाई हाथों ने गालों को छू लिया हो जैसे...

1
   हसरत-ए-दीदार की जानिब में वह भी सामने आये थे  
          खामोश चेहरे की जर्द रंगत पर कुछ इलतिजायें थीं,        
       लब-ए-अक्स पर कुछ हर्फ भी कांप रहे थे उसके      
आज देखा आंखों में मोहब्बत का सैलाब लाये थे !

2
मुझको मालूम है ऐ शाम कि सियाह रात होगी....तू चांद साथ भेजकर यूं मुझे न बहलाया कर !

3
मरमरी सुबह के पहलू ने चुपके से कुछ कहा हो जैसे.. 
उसके हिनाई हाथों ने गालों को छू लिया हो जैसे...

✍✍✍✍
प्रहलाद सिंह

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