जुगलबंदी: शायरी के जबाब में शायरी ...

भाई बहिन की जोड़ी कमाल की ..... बड़े भाई जयवर्धन जैन के साथ .... जुगलबंदी, शायरी के जबाब में शायरी ...
शायराना अंदाज़  - जयति जैन (नूतन) = जयवर्धन जैन
1 - घडी
नूतन -
बार -बार देखती मैं घड़ी , हर पल जिंदगी आगे बड़ी
रोकती भी तो कैसे , वक़्त की थी फुलझड़ी !
जय -
वक्त का पहिया कौन भला रोक पाया है ,
जो वक्त के साथ चला , वह बदल गये
जो वक्त से लडा , वह गुमनाम साया है।

2- साँसे
नूतन -
सांस बनकर रहती है तू मेरे संग,
तू है तो आज मैं जिन्दा हुं !
जय -
यह सांसें ही तो है , जो साथ निभा रही हैं,
मर तो हम तब ही गये थे , जब साथ तूने छोड़ा था।

3 - जिंदगी
नूतन -
मुझसे मिलकर मेरे जेसि हो चली है
जिन्द्गी आज मेरे दिल जेसी हो गयी है !
जय -
खुशनसीब हो जो जिंदगी से मिल लिए
हमे तो आज भी उसका इंतज़ार है।

4- दिल
नूतन -
तुम मिलो तो एक बार, दिल का हाल जताने के लिये,
फ़िर हमें छोड़ किसी और का खयाल दिल मे नहीं आयेगा !
जय -
कभी तो ऐसी मुलाकात हो ,
कुछ ऐसी अपनी बात हो ,
नजर से नजर मिले , दिल से दिल का साथ हो ,
सिर्फ मैं हूं , तुम हो और चांद तारों वाली हसीन रात हो।

5- रिश्ता
नूतन -
तुम मेरे हो सब जानते हैं,
मैं तुम्हारी हुं कोई नहीं मानता !
जय -
तेरा मेरा यह रिश्ता , जैसे चार धाम
जमाना जाने हमे ऐसे , जैसे राधा श्याम।

6- पसंद
नूतन -
मैं आज भी वेसी ही हुं, जेसी उसकी पसंद है,
लेकिन अब वो वेसा नहीं, जेसा मुझे पसंद है !
जय -
न इत्र , खुशबू में महकते , न सजना संवरना करें पसंद,
धोखा देना फितरत में नहीं , जैसा में हूं मुझे कर वैसा ही पसंद।

7- यादें
नूतन -
मेरे काधे पर सर रखकर , दर्द ए जिन्द्गी मत सुनाया करो
नूतन' बिछडोगे यदि तो बिखर जाओगे !
जय -
अपना तुम्हें दिल का हाल बताते थे , कुछ तुम्हारी सुनते थे ,
चकनाचूर कर अरमान हमारे , अपना आशियाना न बना पाओगे ,
याद रखना तुम , एक दिन जय के पास लौट कर जरुर आओगे।

8 - रोग
नूतन -
देखी जो नब्ज मेरी हकीम भी घबरा गया
बोला ये लाइलाज रोग तूने कैसे पा लिया !
जय -
रग रग में भरा , नशा ऐ इश्क
वैघ ,हाकिम न उतार पायेंगे
जाओ मेरी प्रेयसी को ले आओ
दीदार होते ही हम जिंदा दिल हो जायेगे !

9- इंतज़ार
नूतन -
जरा सा कहने में क्या हो जायेगा, मुस्कुरा के ना सही
बे-मन से ही कभी तो कह दो, तुम मेरे हो !
जय -
तुम करती रही शब्दों का इंतजार,
डरे सहमे ,हम बोल कुछ न पाये।

10- जंग
नूतन -
सुकून की तलाश में कलम उठाई थी
सुकून अब दिलो-दिमाग की जंग में गुमराह है !
जय -
सुना था दर्द बांटो कम हो जाता है
पता न था दर्द लिखते हुये हमे रोयगे
सुनाते हुए लोगों को रुलायेंगे।

11- साथ
नूतन -
तुम मेरे साथ युं ही रहना वर्ना
मैं मेरे साथ नहीं रह पाउंगीं !
जय -
साथ तेरा हम ता उम्र निभायेंगे
तेरा इसारा मिलते ही दौड़े चले आयेंगे।

12- मोहब्बत
नूतन -
जिस घर का दरवाजा नहीं होता,
मोहब्बत वो घर है !
जय -
मुहब्बत एक इबादत है ,
खुदा का खुला घर ,
करना हो इबादत तो चले आओ ,
हो काफिर तो ठिकाना कहीं और बनाओ।

13- वक़्त
नूतन -
कुछ देर आराम लूँ तो , दो घंटे बड़ जाती घडी
खुलकर जीने के लिए , खुद से कइयों बार लड़ी !
जय -
सोचा था मंजिल पर पहुंच आराम फरमायेगे,
बचपन किशोर यौवन बदले मंजिल बदल गई।

14- माँ
नूतन -
बेटे के लिए बीबी की ढूडाई, आम बात है
बहु आयी घर से माँ की विदाई, आम बात है !
जय -
मां का आंचल में जन्नत है , क्या बतलाने वाली बात ।
तौल मौल के बोल गौरी आज बहू है जो, कल वहीं सांस।

15- कागज़
नूतन -
आश्चर्य होता है कभी कभी, उलझन मै रहती रोज़ ही
जीवन का हिस्सा हैं जो, कोरे कागज पर लिखना है !
जय -
उलझनों में न रहो कुछ अपनी बात करो
कोरा कागज जिंदगी, तुम कलम दवात बनो।
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