संविधान संशोधन :- महात्वपूर्ण जानकारी

आप लोगों से पूछिए संविधान क्या है ? 80 % लोग जबाब नहीं दे पाएंगे और यही एक कटु सत्य है ! अगर जबाब मिला भी तो बस इतना कि भारत का अपना एक संविधान है और उसी के हिसाब से सब होता है, जिसे अम्बेडकर ने बनाया था !
नाम भी ढंग से नहीं लिया जाएगा कि सर भीमराव अम्बेडकर या बाबा साहब ( भीम सेना के लोग व दलित वर्ग इसी नाम का सम्बोधन करते है ), यह तो हाल हैं देश के ! देश के लोगों को जागरूक करने की श्रेणी में एक और प्रयास ...
आज आपको मैं संविधान से जुडी जानकारी देने जा रही हूँ , संविधान क्या है ? यह जानकारी आपको संविधान की पुस्तक में भी मिल सकती है लेकिन हम उनमे से हैं जब तक सर के ऊपर ना पड़े, कोई मतलब नहीं होता हमें ... हर गली नुक्कड़ पर कश्मीर की दुहाई और लड़ाई करने की बात कहने वाले बेरोज़गार और अलग ही किस्म के फ्री आदमी मिल जायेगें जिनसे आप बातें करवा लीजिये जिन्हे यह भी नहीं पता होगा कि कश्मीर में धारा ३७० लगी है जिसके तहत क्या होता है और क्या हो सकता है ?
संविधान में समय-समय पर आवश्यकता होने पर संशोधन होते रहे हैं ! विधायिनी सभा में किसी विधेयक में परिवर्तन, सुधार अथवा उसे निर्दोष बनाने की प्रक्रिया को 'संशोधन' कहा जाता है ! सभा या समिति के प्रस्ताव के शोधन की क्रिया के लिए भी इस शब्द का प्रयोग होता है ! किसी भी देश का संविधान कितनी ही सावधानी से बनाया जाए, किंतु मनुष्य की कल्पना शक्ति की सीमा बंधी हुई है !
भारतीय संविधान का संशोधन भारत के संविधान में परिवर्तन करने की प्रक्रिया है। इस तरह के परिवर्तन भारत की संसद के द्वारा किये जाते हैं।
जानते हैं कितनी बार और कब हुआ है - संविधान का संशोधन
  • 1st संविधान संशोधन (1951) – इसके द्वारा भारतीय संविधान मे 9वी अनुसूची को जोडा गया है।
  • 7वाॅ संविधान संशोधन (1956) – इसके द्वारा राज्यों का पुनर्गठन करके 14 राज्य और 6 केंद्र शासित प्रदेशों को पुनर्गठित किया गया है।
  • 10वाॅ संविधान संशोधन (1961) – इसके द्वारा पुर्तगालियों की अधीनता से मुक्त हुए दादरा और नागर हवेली को भारतीय संघ में शामिल किया गया।
  • 12वाँ संविधान संशोधन (1962) – इसके द्वारा गोवा, दमण और दीव का भारतीय संघ में विलय किया गया।
  • 14वाॅ संविधान संशोधन (1962) – इसके द्वारा पाण्डेचेरी को केंद्र शासित प्रदेशके रूप में भारत में विलय किया गया।
  • 18वाॅ संविधान संशोधन (1966) – इसके द्वारा पंजाब राज्य का पुर्नगठन करके पंजाब, हरियाणा राज्य और चण्डीगढ को केन्द्रशासित प्रदेश बनाया गया।
  • 21वाॅ संविधान संशोधन (1967) – इसके द्वारा 8 वी अनुसूची में सिन्धी भाषा को शामिल किया गया
  • 24वाँ संविधान संशोधन (1971) – इसके द्वारा संसद को मौलिक अधिकारों सहित संविधान के किसी भी भाग में संशोधन करने का अधिकार दिया गया है।
  • 45वाॅ संविधान संशोधन (1974) – इसके द्वारा सिक्किम को भारतीय सघं में सह राज्य का दर्जा दिया गया
  • 36वाॅ संविधान संशोधन (1975) – इसके द्वारा सिक्किम को भारतीय सघं में 22 वे राज्य के रूप में सम्मिलित किया गया।
  • 42वाॅ संविधान संशोधन (1976) – आपातकाल को समय की जरूरत बताते हुए इंदिरा गांधी ने उस दौर में लगातार कई संविधान संशोधन किये. 40वें और 41वें संशोधन के जरिये संविधान के कई प्रावधानों को बदलने के बाद 42वां संशोधन पास किया गयाआपातकाल के दौरान भारतीय संविधान में कुछ संशोधन ऐसे भी हुए जिन्हें सकारात्मक नजरिये से देखा जा सकता है. संविधान की प्रस्तावना में 'समाजवादी', 'धर्मनिरपेक्ष' और 'अखंडता' जैसे शब्दों का जुड़ना और संविधान में मौलिक कर्तव्यों का शामिल होना कुछ ऐसे ही उदाहरण हैं
  • 42वें संशोधन के सबसे विवादास्पद प्रावधानों में से एक था - मौलिक अधिकारों की तुलना में राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों को वरीयता देना
  • इसी संशोधन के कारण संविधान को 'कंस्टीट्यूशन ऑफ इंदिरा' कहा जाने लगा था. इसके जरिये भारतीय संविधान की प्रस्तावना तक में बदलाव कर दिए गए थे
  • यह संविधान संशोधन प्रधानमंत्री इन्दिरा गाॅधी के समय स्वर्ण सिंह आयोग की सिफारिश के आधार पर किया गया था। यह अभी तक का सबसे बङा संविधान संशोधन है। इस संविधान संशोधन को लघु संविधान की संज्ञा दी जाती है। इस संविधान संशोधन में 59 प्रावधान थे।
  • 1.संविधान की प्रस्तावना में पंथ निरपेक्ष समाजवादी और अखण्डता शब्दों को जोडा गया।
  • 2. मौलिक कर्तव्यों को संविधान में शामिल किया गया।
  • 3.शिक्षा, वन और वन्यजीव, राज्यसूची के विषयों को समवर्ती सूची में शामिल किया गया।
  • 4.लोक सभा और विधान सभा के कार्यकाल को बढाकर 5 से 6 वर्ष कर दिया गया।
  • 5.राष्ट्रपति को मंत्रीपरिषद की सलाह के अनुसार कार्य करने के लिए बाध्य किया गया।
  • 6.ससंद द्वारा किये गये संविधान संशोधन को न्यायालय में चुनौती देने से वर्जित कर दिया गया है


  • 44वाँ संविधान संसोधन (1978) –
  • (1) सम्पत्ति के अधिकार को मौलिक अधिकारों से हटाकर कानूनी अधिकार बना दिया है।
  • (2) लोक सभा और विधान सभा का कार्यकाल पुनः घटाकर 5 वर्ष कर दिया गया।
  • (3) राष्ट्रीय आपात की घोषणा आंतरिक अशान्ति के आधार पर नहीं बल्कि सशस्त्र विद्रोह के कारण की जा सकती है।
  • (4) राष्ट्रपति को यह अधिकार दिया गया कि वह मंत्री मण्डल की सलाह को एक बार पुर्नविचार के लिए वापस कर सकता है। लेकिन दूसरी बार वह सलाह मानने के लिए बाध्य होगा।
  • 48वाॅ संविधान संशोधन (1984) -संविधान के अनुच्छेद 356 (5) में परिवतर्न करके यह व्यवस्था की गई कि पंजाब में राष्ट्रपति शासन की अवधि को दो वर्ष तक और बढाया जा सकता है।
  • 52वाँ संविधान संशोधन (1985) – इसके द्वारा संविधान में 10 वी अनुसूची को जोडकर दल बदल को रोकने के लिए कानून बनाया गया।
  • 56वाँ संविधान संशोधन (1987) – इसके द्वारा गोवा को राज्य की श्रेणी में रखा गया।
  • 61वाँ संविधान संशोधन (1989) – संविधान के अनुच्छेद 326 में संशोधन करके लोक सभा और राज्य विधान सभाओं में मताधिकार की उम्र 21 वर्ष से घटाकर 18 वर्ष कर दी गई।
  • 71वाँ संविधान संशोधन (1992) – इसके द्वारा संविधान की 8 वी अनुसची में कोकणी , मणिपुरी, और नेपाली भाषाओं को जोडा गया।
  • 73वाँ संविधान संशोधन (1992) – इसके द्वारा संविधान में 11 वी अनुसची जोडकर सम्पूर्ण देश में पंचायती राज्य की स्थापना का प्रावधान किया गया।
  • 74वाँ संविधान संशोधन (1992) – इसके द्वारा संविधान में 12 वी अनुसूची जोडकर नगरीय स्थानीय शासन को संवैधानिक संरक्षण प्रदान किया गया।
  • 84वाँ संविधान संशोधन (2001) – इसके द्वारा 1991 की जनगणना के आधार पर लोक सभा और विधान सभा क्षेत्रों के परिसीमन की अनुमति प्रदान की गई।
  • 86वाँ संविधान संशोधन (2003) – इसके द्वारा प्राथमिक शिक्षा को मौलिक अधिकार की श्रेणी में लाया गया।
  • 87वां संशोधन (2003): परिसीमन में संख्या का आधार 1991 की जनगणना के स्थान पर 2001 कर दी गई है.63. 89वां संशोधन (2003): अनुसूचित जनजाति के लिए पृथक राष्ट्रीय आयोग की स्थापना की व्यवस्था.
  • 88वां संशोधन (2003): सेवाओं पर कर का प्रावधान

    - 90वां संशोधन (2003): असम विधान सभा में अनुसूचित जनजातियों और गैर अनुसूचित जनजातियों का प्रतिनिधित्व बरक़रार रखते हुए बोडोलैंड, टेरिटोरियल कौंसिल क्षेत्र, गैर जनजाति के लोगों के अधिकारों की सुरक्षा.
  • 91वाँ संविधान संशोधन (2003) –
  • (1) इसके द्वारा केन्द्र और राज्यो के मंत्री परिषदों के आकार को सीमित करने तथा दल बदल को प्रतिबन्धित करने का प्रावधान है।
  • (2) इसके अनुसार मंत्री परिषद में सदस्यों की संख्या लोक सभा या उस राज्य की विधान सभा की कुल सदस्य संख्या से 15% से अधिक नहीं हो सकती है।
  • (3) साथ ही छोटे राज्यों के मंत्री परिषद के सदस्यों की संख्या अधिकतम 12 निश्चित की गई है।
  • 92वाँ संविधान संशोधन (2003) – इसके द्वारा संविधान की 8 वी अनुसूची में बोडो, डोगंरी, मैथिली और संथाली भाषाओं को शामिल किया गया है।
  • 93वां संशोधन (2006): शिक्षा संस्थानों में अनुसूचित जाति/ जनजाति और अन्य पिछड़े वर्गों के नागरिकों के दाखिले के लिए सीटों के आरक्षण की व्यवस्था, संविधान के अनुच्छेद 15 की धरा 4 के प्रावधानों के तहत की गई है.
  • 103वाँ संविधान संशोधन – जैन समुदाय को अल्पसंख्यक का दर्जा
  • 108वाॅ संविधान संशोधन – महिलाओं के लिए लोकसभा व विधान सभा में 33% आरक्षण
  • 109वाॅ संविधान संशोधन – पंचायती राज्य में महिला आरक्षण 33% से 50%
  • 110वाॅ संविधान संशोधन – स्थानीय निकाय में महिला आरक्षण 33% से 50%
  • 114वाँ संविधान संशोधन – उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की आयु 62 बर्ष से 65 बर्ष
  • 115वाॅं संविधान संशोधन – GST (वस्तु एवं सेवा कर)
  • 117वाॅं संविधान संशोधन – SC व ST को सरकारी सेवाओं में पदोन्नति आरक्षण

धारा ३७० - धारा ३७० भारतीय संविधान का एक विशेष अनुच्छेद (धारा) है जिसके द्वारा जम्मू एवं कश्मीर राज्य को सम्पूर्ण भारत में अन्य राज्यों के मुकाबले विशेष अधिकार अथवा (विशेष दर्ज़ा) प्राप्त है।
विशेष अधिकार
  • धारा 370 के प्रावधानों के अनुसार, संसद को जम्मू-कश्मीर के बारे में रक्षा, विदेश मामले और संचार के विषय में कानून बनाने का अधिकार है लेकिन किसी अन्य विषय से सम्बन्धित क़ानून को लागू करवाने के लिये केन्द्र को राज्य सरकार का अनुमोदन चाहिये।
  • इसी विशेष दर्ज़े के कारण जम्मू-कश्मीर राज्य पर संविधान की धारा 356 लागू नहीं होती।
  • इस कारण राष्ट्रपति के पास राज्य के संविधान को बर्ख़ास्त करने का अधिकार नहीं है।
  • 1976 का शहरी भूमि क़ानून जम्मू-कश्मीर पर लागू नहीं होता।
  • इसके तहत भारतीय नागरिक को विशेष अधिकार प्राप्त राज्यों के अलावा भारत में कहीं भी भूमि ख़रीदने का अधिकार है। यानी भारत के दूसरे राज्यों के लोग जम्मू-कश्मीर में ज़मीन नहीं ख़रीद सकते।
  • भारतीय संविधान की धारा 360 जिसके अन्तर्गत देश में वित्तीय आपातकाल लगाने का प्रावधान है, वह भी जम्मू-कश्मीर पर लागू नहीं होती।
  • जम्मू और कश्मीर का भारत में विलय करना ज़्यादा बड़ी ज़रूरत थी और इस काम को अंजाम देने के लिये धारा 370 के तहत कुछ विशेष अधिकार कश्मीर की जनता को उस समय दिये गये थे। ये विशेष अधिकार निचले अनुभाग में दिये जा रहे हैं।
विशेष अधिकारों की सूची
1. जम्मू-कश्मीर के नागरिकों के पास दोहरी नागरिकता होती है।
2. जम्मू-कश्मीर का राष्ट्रध्वज अलग होता है।
3. जम्मू - कश्मीर की विधानसभा का कार्यकाल 6 वर्षों का होता है जबकि भारत के अन्य राज्यों की विधानसभाओं का कार्यकाल 5 वर्ष का होता है।
4. जम्मू-कश्मीर के अन्दर भारत के राष्ट्रध्वज या राष्ट्रीय प्रतीकों का अपमान अपराध नहीं होता है।
5. भारत के उच्चतम न्यायालय के आदेश जम्मू-कश्मीर के अन्दर मान्य नहीं होते हैं।
6. भारत की संसद को जम्मू-कश्मीर के सम्बन्ध में अत्यन्त सीमित क्षेत्र में कानून बना सकती है।
7. जम्मू-कश्मीर की कोई महिला यदि भारत के किसी अन्य राज्य के व्यक्ति से विवाह कर ले तो उस महिला की नागरिकता समाप्त हो जायेगी। इसके विपरीत यदि वह पकिस्तान के किसी व्यक्ति से विवाह कर ले तो उसे भी जम्मू-कश्मीर की नागरिकता मिल जायेगी।
8. धारा 370 की वजह से कश्मीर में RTI लागू नहीं है, RTE लागू नहीं है, CAG लागू नहीं है। संक्षेप में कहें तो भारत का कोई भी कानून वहाँ लागू नहीं होता।
9. कश्मीर में महिलाओं पर शरियत कानून लागू है।
10. कश्मीर में पंचायत के अधिकार नहीं।
11. कश्मीर में चपरासी को 2500 रूपये ही मिलते है।
12. कश्मीर में अल्पसंख्यकों [हिन्दू-सिख] को 16% आरक्षण नहीं मिलता।
13. धारा 370 की वजह से कश्मीर में बाहर के लोग जमीन नहीं खरीद सकते हैं।
14. धारा 370 की वजह से ही कश्मीर में रहने वाले पाकिस्तानियों को भी भारतीय नागरिकता मिल जाती है।

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जयति जैन (नूतन),
युवा लेखिका, सामाज़िक चिन्तक
रानीपुर झांसी उ.प्र

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