बेबुनियाद-बेनाम रिश्ता भाग =2

पाठकों की पसंद पर इस कहानी का दूसरा भाग लिखा है मैने, कुछ लोगों ने इसे बकवास भले कहा लेकिन पसंद करने वालों की तादात काफ़ी थी, अब तक इस कहानी को 10,000 लोग पढ चुके हैं तो अब शुरू करते हैं कि आखिर फ़िर हुआ क्या जब दोनों मिले, अलग होने के बाद...
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सोनू से कहीं जायदा कुछ नीतू की जिन्द्गी से गया था, खत्म हुआ था लेकिन

मिला भी नीतू को ही बहुत कुछ सिवाय एक ऐसे इंसान के जो सिर्फ उसी का हुआ
करता था ! वक्त गुजरा और दोनों फ़िर मिले हर साल की तरह... शायद इक नयी
कहानी और रिश्ते की शुरूआत हो !
वक्त गुजरा और दोनों फ़िर मिले हर साल की तरह... अलग होने के पूरे 5 महीने
के बाद ! अलग हुए या साथ थे, ये दोनों बाते किसी तीसरे को पता ना थी,
इसीलिये जो भी हुआ दोनों के बीच हुआ था ! इन 5 महीनों में नीतू ने अपना
सबकुछ दांव लगा दिया सोनू को मनाने में, उसने लगातार दिन में 2-3 बार फोन
किये कि सोनू इस बार उसे माफ़ करदे, अगली बार से वो जायदा से जायदा समय
उसे देगी ! काफ़ी दिनों तक सोनू ने फोन नहीं उठाया, क्युकिं वो जानता था
जितनी तकलीफ़ उसे हो रही है उससे कहीं जायदा नीतू को है, और अगर उसने फोन
उठाया तो वो अपने आप को रोक नहीं पायेगा नीतू के पास लौटने से !
समय गुजरता जा रहा था और दोनों जिन्दादिल इंसान सूखे पत्तों की तरह मुरझा
रहे थे, दोनों एक दूसरे के बिना नहीं जी सकते ये वो दोनों ही जानते थे पर
नीतू के परिवार की सोचकर दोनों एक दूसरे को अपना नहीं पा रहे थे !
जेसे तेसे दिन गुजर जाता लेकिन रात दोनों रोते निकलती, हालाकि जब साथ थे
तब भी कभी रात 11 बजे के बाद बात नहीं करते थे लेकिन अब तन्हाई, घुटन,
दर्द और अकेलापन सोने नहीं देता था !
लेकिन नीतू ने हार नहीं मानी थी वो रोज़ की तरह सोनू को फोन करती थी कि एक
दिन वो उस पर दया खाकर उसकी बात को समझेगा, और एक रात करीब 1 महीने
बाद... नीतू ने रात को 1:30 पर सोनू को फोन लगाया, सोनू उस समय नीतू के
खयालों में ही बेसुध पडा था अब तो उसने सिगरेट और कभी कभी शराब पीनी शुरू
कर दी थी !
अचानक से आधी रात को नीतू का फोन आया देखा तो थोडी खुद की सुध ली, और
सोचने लगा कि इतनी रात को फोन पक्का नीतू सो नहीं पा रही होगी पता नहीं
केसी होगी, मुरझा गयी होगी मेरे बिना, परेशानी में तो नहीं है किसी?
जब लगातार फोन आता रहा तो घबराकर सोनू ने फोन उठाया...
- हेलो... हा कौन
= मेरा नंबर भी डीलीट कर दिया, वाह
- कौन हो आप? मे पहचाना नहीं.
= अब तुम मुझे पहचानोगे भी केसे, मैं लगती कौन हुं तुम्हारी ?
- देखिये आपने गलत जगह फोन किया है...
= सौरी गलती से लग गया, में तो अपने किसी दोस्त को फोन लगा रही थी !
और
फोन कट गया! लगा जेसे बहुत कुछ टूट गया हो अंदर... नीतू रोती रही, वो
दर्द जो अब असहनीय हो गया था! और वहा सोनू भी कहा खुश था वो भी तो रोया
था ! करीब आधे घंटे बाद खुद सोनू ने फोन किया...
- हेलो नीतू... केसि हो? ठीक तो हो ना, इतनी रातगये फोन क्युं किया, क्या हुआ?
= बस ऐसे ही, कोई खास वज्ह नहीं थी... तुमसे बात करने का मन किया तो
बस... खुद को सम्भाल्ते हुए नीतू बोली !
- अच्छा, वेसे खुश तो बहुत होगी तुम, तुम्हारे रास्ते का कांटा निकल
ग्या, अब चैन से अपने पति के साथ ऐश करो ! ना बार बार किसी को फोन करना,
ना किसी की बाते सुन्ना कि फोन क्युं नहीं करती, समय नहीं है वगेरह
वगेरह... क्युं हो ना खुश अब ?
सोनू ने ये सवाल नहीं किया था बल्कि खींच कर जोरदार तमाचा मारा था नीतू
की भावनाओ को ! नीतू थोडा चुप रही फ़िर बोली -
सही कह रहे हो तुम, तुमने जो फ़ैसला लिया वो बहुत अच्छा है ! तुम इतना
मुझे समझते हो उसके लिये थैंक यू !
= तुम बताओ केसे हो, क्या चल रहा है जिन्द्गी में ? मेरी तरह तुम भी खुश
होगे, कि चलो सिर दर्द तो दूर गया, अब ना बार बार फोन करना ना ही किसी को
सम्भाल्ना !
- खुश... हा बहुत हुं ! तुमने इतना डसा मुझे कि दूर जाकर खुश होना तो
बनता ही है ! तुम भी तो खुश हो तो मैं पागल थोडे हुं जो बैठा रोऊगा !
= मैने कब कहा तुम पागल हो तुम नहीं हो पागल, ना ही बेवकूफ़, तुम बहुत ही
अच्छे हो ! तभी शायद में तुम्हे भूल नहीं पाउगी कभी !
- वेसे तुम्हारे पति को पता है कि आधी रात को तुम किसे डस रही हो मतलब
किससे बात कर रही हो ?
= नहीं ! वो सो रहे हैं, बोल रहे थे कि सोनू का फोन नहीं आया क्या हुआ,
तुम दोनों दोस्तो की बात नहीं हो रही क्या ?
- क्या बात है, उसको पता है कि काफ़ी दिनों से बात नहीं की मैने वाह ! तुम
क्या बोली?
= बोल दिया उसके पास समय नहीं है ! बहुत बिज़ी है वो !
- और वो पागल मान गया ! सोनू हसते हुए बोला!
= तुम कभी किसी को भी सही नहीं समझ सकते क्या ! वो जानते हैं तुम मेरे
अच्छे दोस्त हो आज तक मैने कभी उनको नहीं टोका जिससे बात करना है करे तो
वो मुझे क्युं रोकेगे में चाहे जिससे बात करुं ! नीतू ने आक्रामक होकर
कहा ! लोगों को जज करना बंद करो सोनू !
- हस्ते हुए सोनू बोला, मेरा मन मैं जो चाहू जेसे चाहू समझू, तुम्हे क्या ?
= कभी खुश नहीं रह पाओगे ऐसे, कम से कम समझने की कोशिश तो करो कभी ! हर
बार मुझे अपने प्यार का सबूत देना पड़ता है ! कितने बार बोलू कि ही पहले
और अखिरी इंसान हो जिससे मैने प्यार किया है ! एक वो है जिन्हे जरुरत हुई
तो जरुरत पूरी की और कोई मतलब नहीं हां जिम्मेदारी सारी निभाते हैं पति
की और एक तुम हो जो किसी बात को समझना ही नहीं चाहते, ये जानते हुए कि
तुम्हारे बिना मेरा हाल बुरा हो जाता है, इसके बाद भी 1 महीने निकाल दीये
तुमने क्युं ?
तुम तो मुझसे बहुत प्यार करते थे ना, ऐसा प्यार था तुम्हारा तुमने ये
नहीं सोचा कि केसे मैं अकेले रहूगी, कौन होगा मुझे समझने वाला, किसको
अपना दर्द सुनाऊगी कौन समझेगा ! तुम भी औरो की तरह निकले एक के पास समय
नहीं, काम से फ़ुर्सत हुए तो फोन ओर टी.वी. और सो जाओ और एक तुम जिसकी
जिन्द्गी हुआ करती थी मैं, कभी समझने की जरा भी कोशिश की तुमने कभी कि वो
केसी मुसीबत में है जो फोन नहीं कर पा रही ! जानते हो पिछले 1 महीने से
में B.P. की गोलिया खा रही हुं, खुश हुं ना बहुत इसीलिये !
मैने तो कई बार बोला, सब छोड़ कर आउगी तो अपनाओगे मुझे, तो तुममे हिम्मत
नहीं है ! अभी मेरे परिवार का खयाल है, कल को अपने परिवार का होगा या
नहीं ! और हां एक वादा करती हुं तुमसे तुम शादी करके अच्छे से सेट हो
जाओ, तुम्हारी जिन्द्गी से मैं हमेशा के लिये दूर हो जाऊगी ! कभी फोन
नहीं करूगी कम से कम तसल्ली तो रहेगी तुम्हारा ध्यान रखने वाला है कोई !
आज़ाद कर दुगी मैं तुम्हे हमेशा के लिये !
अरे मेरी ना सही अपनी ही भावनाओं का खयाल रखो, तुम खुश हो इन सबसे और झूठ
बोलना मत ! मैं तुम्हे तुमसे जायदा जानती हुं, नहीं हो तुम खुश ये नाटक
बंद करो ! खुद को तकलीफ़ देना बंद करो, तुम्हे जो कहना है सुनाना है सुना
लो, अंदर ही अंदर मत घुटो ! मेरी देख रेख के लिये बहुत है लेकिन तुम
अकेले हो ! केसे करोगे सब अकेले सामान्य ? देखो बहुत हुआ अब मैं माफ़ी
मांग रही हुं ना ! सौरी
हाथ जोड़के, पैर पकड़कर माफ़ी मांग रही हुं, तुम्हे अब भी मेरे साथ नहीं
रहना है मत रहो लेकिन खुद को सम्भालो, खुद तो खुश रहो !
अब बोलोगे कुछ...
सोनू निशब्द था !!!

रचनाकार- जयति जैन





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