कविता- चलो अब ऑफलाइन हुआ जाए ।


क्यों ना थोड़ा सा अब
ऑफलाइन हुआ जाए,
जिनसे सालों पहले बात हुई
उन्हें फिर फोन किया जाए । 
कुछ वो अपनी सुना दें 
और कुछ हम अपनी, 
क्यों ना फिर से वो 
दौर शुरू किया जाए ।
अपनों संग दिल खोलकर
नयी दोस्ती की नींव रखी जाए 
उनके संग मिलकर हफ्ते का 
एक दिन खुलकर जिया जाए ।
बहुत हुई ऑनलाइन जिंदगी
फेसबुक वाट्सएप पर झूठी यारी, 
क्या मिला 
चलो आज सोचा जाये ।
दोस्ती के दिन कुछ पुराने दोस्त 
उन्हें फिर याद किया जाए 
फिर से वो बेफिक्री में डूबी
यारियो को दिल से जिया जाये । 
बहुत हुआ ऑनलाइन, 
चलो अब ऑफलाइन हुआ जाए ।

-- जयति जैन "नूतन" --

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