कविता - स्त्री हो

#स्त्री हो#

तुम शीतल हो कोमल हो,
पावन हो,
मन भावन हो,
आँखों से कभी छलक उठा ,
समर्पण का सावन हो,
रचना हो,
प्रक्रति हो,
देवताओं की स्तुति हो,
तो कभी चीथड़ो से झांकती ,
वासना हो वृत्ति हो,
कयोंकि तुम स्त्री हो।


कभी जो पर फैलाय,
तो अन्तरिक्ष को नाप लिया ,
वैरागनी जो बनी कभी
नटवर के मन को झांक लिया ,
धरती हो ,सरिता हो,
शक्ति हो ,
श्रंगार हो,
जीवन के जटिल मूल्य का ,
सरस -सुन्दर आधार हो ,
क्यों कि तुम स्त्री हो ।.......

लेखक- कवि सत्यम

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