तरक्की- अपने और नाखुशी

तरक्की- अपने और नाखुशी

*** अक्सर हम अपनों के किये धोके पर चुप रह जाते हैं, बोले भी क्या, कि ऐसे अपने हैं, आज का समय सतयुग का नहीं है कि राम- भरत जेसे अपने मिल जाये ! आज तो रावण - विभीषण जेसे भाई मिलते हैं !
हम अपनों के अपनेपन को देखते हैं और उनकी मन्शा को छुपा लेते हैं, हम आज अपनों की नाखुशी की बात करते हैं***
ये बात पुराने समय से देखी-सुनी जा रही है कि अपने ही धोका देते हैं तभी लोग जान-माल से हाथ धो  बैठते हैं !
आज अपनों के बीच ही प्रतिस्पर्धा होने लगी है, भाई-भाई की तरक्की नहीं देख सकता, बहिन-बहिन की खुशी नहीं !
अपने वही हैं, लेकिन माहोल-प्रसंग अब वो नहीं हैं ! अगर आप लीक से हटकर डगर चुनते हैं, तो सोच लीजिये आप अकेले ही हैं अब कोई साथ नहीं देगा !

आज की जिन्द्गी, भला कोई जिन्द्गी है, अपनों के लिये समय नहीं है, कौन कहा और क्या कर रहा है, नहीं जानते!
हां अगर ऊचें उठ गये, तो अपनों के ताने सुन्ने मिल जायेगे दूसरे को कि
तुम अब भी यहा हो और उसे देखो वो आज कहा है...
तब दूसरे की ऊचाई ना-खुश कर ही जाती है !
और यदि आप वो शक्स हैं जो तरक्की कर रहा है, यदि आपने ऊचांई छू ली तो सबसे बडे दुश्मन भी आपके यही हैं !
चलो कहीं और नहीं खुद की ही बात करती हुं, मेरे इतने लेख प्रकाशित होते हैं, अब मैं ब्लोग पर भी आर्टिकल पोस्ट करती हुं, मेरे अपने सभी जानते हैं इस बात को,
लेकिन
लेकिन
देखा-पडा कितनों ने...
अभी मैं ये पुछूं कि भाई बेकग्राउंड ही बता दो किस कलर का है वेब साइट का तो नहीं बता पायेगे ! ऐसा नहीं है कि वो जलते हैं, पर किसी को दिलचस्पी नहीं है !
- लेखिका- जयति जैन
रानीपुर, झांसी उ.प्र.

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