राजनीति का भी हिस्सा बनें

सरल शब्दों में कहें तो राजनेताओं द्वारा बनाई गई नीति को राजनीति कह सकते हैं। राजनीति की वास्तविकता से हम सभी परिचित हैं। एक लाल बहादुर शास्त्री जी के समय की राजनीति थी और एक आज के समय की, जिसमें अपराधी और अनपढ़ों को प्रमुख स्थान दिया गया है। जिससे समाज में क्या दुष्परिणाम आ रहे हैं, किसी से छिपा नहीं है।

एक ऐसे समुदाय/समाज/धर्म के लोग राजनीति में पीछे हैं जो देश की 1 प्रतिशत आबादी भी ना होने के बावजूद भी सबसे ज्यादा टैक्स देते हैं, सबसे ज्यादा शिक्षित और अपराध के मामलों में सबसे पीछे या यूं कहें कि 1 लाख अपराधिक मामलों में उनकी संख्या 1 हो, यह बहुत बड़ी बात होगी, राजनीति के लिए पूर्णरूप से योग्य तब भी राजनीति में आने से कतराते हैं, वह हैं जैन समाज के लोग।

2011 में हुई जनगणना के अनुसार देश में जैनों की आबादी 45 लाख है, जो देश की जनसंख्या का 0.4% ही है। यह लोग इतने ज्यादा शांतिप्रिय होते हैं कि अपने व्यवसाय में ही रमे रहना इन्हें पसन्द है, यह आगे आकर देश-समाज की जिम्मेदारी नहीं लेना चाहते, आखिर क्यों?

क्या यह लोग मान चुके हैं कि राजनीति हमारे लिए नहीं या फिर इन्होंने कोशिश तो भरपूर की लेकिन इन्हें मौका नहीं दिया गया।

'जाति समीकरण' इसका एक मुख्य कारण यह भी हो सकता है। सामान्यता सरपंच से लेकर विधायक तक उन्हीं को टिकिट दी जाती है, जिस समुदाय के लोगों की अधिकता होती है। उदाहरण स्वरूप यदि किसी जाति के लोगों की संख्या पचास हजार है और किसी दूसरी जाति की संख्या पांच हजार, तब नेताओं द्वारा पचास हजार जनसंख्या वाले समुदाय से एक व्यक्ति को चुना जाएगा भले वह अनपढ़, अपराधी और अयोग्य क्यों ना हो। पांच हजार की जनसंख्या में भले ही व्यक्ति शिक्षित, पूर्ण योग्य होने के बावजूद उसे टिकिट नहीं दिया जाता। यह देश की सबसे बड़ी विडंबना है।

जैन समाज के लोगों की जनसंख्या में वृद्धि ना होना भी एक बुरा संकेत है, जहां अन्य समुदाय के लोगों की संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है वहीं जैन समाज के लोगों में अपने आप को विश्वभर में फैलाने जैसा कोई विचार नहीं है। उनसे अपना घर और दुकान छोड़े नहीं जा रहे, यह बेहद दुखद है।

जैन समाज के लोग जिस नीति-धर्म के अनुसार चलते हैं, उस नीति को राजनीति में भी लाना होगा तब जाकर राजनीति की वास्तविक स्थिति में सुधार लाया जा सकता है। लोगों को बताना होगा कि हिंसा, झूठ, चोरी, परिग्रह सब पाप हैं, इन पापों को पालने से व्यक्ति के साथ साथ समाज की दुर्गति होती है।

इसलिए पाटियों में फैली गंदगी को हटाने के लिए जैन समाज के लोगों को बढ़ चढ़कर राजनीति में हिस्सा लेना चाहिए ताकि अपने समाज को अप्रत्यक्ष रूप से सहारा दे सकें। एक अच्छा नेता, लाखों लोगों को बुरा बनने से रोक सकता है।






No comments:

Post a Comment