कानून, विवाह और बलात्कार


यह जान कर आश्चर्य होगा आपको कि २०१४ के मौजूदा कानून के अनुसार भी विवाह के लिए
लड़की की उम्र 18 साल
होनी चाहिए ,मगर 18 से कम होने पर भी विवाह "गैरकानूनी"
नहीं माना-समझा जाता और भारतीय दण्ड संहिता की धारा
375 के अनुसार ‘सहमति की उम्र’ 18 साल है पर इसी कानून के अपवाद अनुसार
"15 वर्ष से अधिक उम्र की
पत्नी के साथ यौन संबंध, किसी भी स्थिति में बलात्कार नहीं है"। क्यों?
आपकी जानकारी के लिए बता दूं कि
1860 में सहमति की उम्र सिर्फ 10 साल थी जो 1891 में 12 साल,
1925 में 14 साल और 1949 में 16 साल की गई
थी।
1949 के बाद इस पर,
कभी कोई विचार ही नहीं किया गया।
अध्यादेश (3.2.2013)
और बाद में नए अधिनियम (२०१३) में इसे 16 से बढ़ा
कर 18 किया गया।
अन्तर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (संयुक्त राष्ट्र) की एक रिपोर्ट के अनुसार "दुनिया
की ९८ प्रतिशत पूँजी पर पुरुषों का कब्जा है. पुरुषों के बराबर आर्थिक और
राजनीतिक सत्ता पाने में औरतों को अभी हज़ार वर्ष और लगेंगे."

स्त्री शरीर को लेकर बने सस्ते चुटकुलों से लेकर चौराहों पर होने वाली छिछोरी गपशप तक और इंटरनेट पर परोसे जाने वाले घटिया फोटो से लेकर हल्के बेहूदा कमेंट तक में अधिकतर पुरुषों की गिरी हुई सोच से हमारा सामना होता है।
बलात्कार। यह लफ्ज कितना असर करता है हम पर? क्या झनझना देता है हमारे मानस के तंतुओं को या हम ऐसी खबरों को देख-सुन कर निरपेक्ष भाव से आगे बढ़ जाते हैं?
अगर हम संवेदनशील हैं तो ही खबर हमें स्पर्श करती है अन्यथा आमतौर पर यही प्रतिक्रिया होती है कि उफ, फिर वही
बलात्कार की खबर? इसमें नया क्या है? अगर तरीका नया है तो खबर हमारे काम की, वरना एक स्त्री का लूटा जाना हमारे मन की धरा पर कुछ खास हलचल नहीं मचाता।
हमारी सामाजिक मानसिकता भी स्वार्थी हो रही है। फलस्वरूप किसी भी मामले में हम स्वयं को शामिल नहीं करते और अपराधी में व्यापक सामाजिक स्तर पर डर नहीं बन पाता। पहली बार दामिनी/निर्भया के मामले में सामाजिक रोष प्रकट हुआ। वरना तो ना सोच बदली है ना समाज। अभी भी हालात 70 प्रतिशत तक शर्मनाक हैं।
बलात्कार जघन्य अपराधों की श्रेणी में आता है। जिसकी सजा उम्रकैद अथवा मौत तक हो सकती है। लेकिन होती ना के बराबर है !

कुछ समय पहले ही दिल्ली की एक अदालत ने यह व्यवस्था दी थी कि पति के द्वारा जबरन संभोग बलात्कार नहीं है , और उसके दो दिन पहले ही मध्यप्रदेश में एक पति के द्वारा अपने अन्य परिवार -सद्स्यों के साथ मिलकर एक महिला का सामूहिक बलात्कार किया गया . ये बलात्कार की कुछ ऐसी घटनायें हैं ,
जिनमें परिवार ही स्त्री उत्पीडन का सबसे बडा केंद्र दिखा है, जिसके साथ सांस्कृतिक तर्क और उससे संचालित कानून की व्यवस्था भी है. महभारत में एक कथा है कि भीष्म किसी 'ओघवती' की कहानी सुनाते हैं , जिसमें अतिथि की सेवा के लिए उसका पति उसे सौंप देता है यह कथा पति के मोक्ष के लिए पत्नी के बलात्कार को सांस्कृतिक तर्क देती है !

लेखिका- जयति जैन, रानीपुर झांसी उ.प्र.

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