सफ़र और सोच

ट्रेन का सफ़र और तस्लिमा नसरीन जी का लिखा उपन्यास लज़्जा... सफ़र इसी सोच के साथ खत्म हुआ की आखिर हिंदुओं ने 1992 में बाबरी मस्जद गिरा कर देश में ही नहीं बल्कि आस पडोस के देशों में खुंखार स्थिति पैदा कर दी थी ! क्या मिला उन्हें अपने ही देशवासियों को दर्द देकर ! करते कुछ लोग हैं, भुगतते सभी हैं ! फ़िर मुसलमानों का भयावह रूप देखने को मिला, फ़िर हिंदुओं की क्रुरता दिखी ! ना जाने कितने दिन तक यही सब चलता रहा,, आखिर क्युं ? अपने ही लोगों को मारकर क्या बताना चाहते हैं ये जातीवादी लोग !सालों पुरानी मसिज़द को गिराना हिंदुओं का गलत फ़ैसला था, क्युकिं अगर जैन मंदिरों की बात की जाये तो ना जाने कितने जैन मंदिरों को हिंदुओं ने अपने अधीन कर रखा है, कितने मंदिर तोड़ दिये ! याद रखें तिरुपति बाला जी जैन मंदिर है/था, यहा की मुख्य मूर्ति जैन है, जिसपे सालों पहले से हिंदुओं ने कब्जा कर रखा है! और ना जाने कितने जैन मंदिर हैं जिन्हें हिंदुओं ने हिंदू बना डाला, यदि कभी जैन आक्रोश पर उतर आये तो जाने-माने प्रसिद्ध हिंदुओं के मंदिरों का अस्तित्व खतरे में पड़ जायेगा !!! लेकिन जैन समाज के लोग ऐसा कोई आंदोलन नहीं करेगे, उम्मीद है मुझे! क्युकि जैनि शान्त और चुपचाप अपने काम से मतलब रखते हैं और ये मैं इसलिय नही कह रही हुं कि में भी जैन हु ! कभी जैनि के आंदोलन में मार काट देखी है किसी ने ! इसिलिये भारत को हर धर्म का क्षेत्र बने रहना चाहिये, यही सम्मानीय है !
मैं तस्लिमा जी की इस बात से बिल्कुल सहमत हुं कि भारत में यदि मुसलमान अल्पसंखयक हैं तो, उसी तरह पाकिस्तान - बान्ग्लादेश में हिंदू अल्प्संखयक हैं !!! लेखिका- जयति जैन

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