जयति जैन 'नूतन' का हास्य व्यंग्य

व्यंग्य- चुनावी मौसम में सूर्य देवता का कहर


गैस सिलेंडर खत्म हो गया जाकर एजेंसी से दूसरा ले आओ। मैंने कहा- सुनो, धूप में ना भगाओ, इतनी गर्मी है कि दो मिनट धूप में जाओ और फिर आकर दो बाल्टी पानी से नहाओ इसलिए तपती धूप में ना भगाओ।
श्रीमती जी बोल पड़ी- "नेताओं को देखो कितना काम करते हैं, ऐसी धूप में भी वोट मांगने के लिए फिरते हैं।"
मैंने कहा उन्हें-
यदि पांच साल तक एसी की हवा खानी है तो इतना तो करना होगा, तपती धूप हो चाहे मूसलाधार बारिश या फिर कपकंपा देने वाली सर्दी घर से तो निकलना होगा। नेताओं को देख कर सोचने पर मजबूर हो जाते हैं, ऐसे मौसम में भी इतनी अच्छी मुस्कान कहाँ से लाते हैं। अब क्या करें मजबूरी है वरना कौन  इनका चेहरा देखेगा। दिनभर देखो तो लगता है कि बेचारे भूख हड़ताल पर बैठे हैं। चुनाव जीतना है तो भूख से ही ऐंठे हैं।
बोली ऐसी कि कोयल भी शरमा जाए और बिन मौसम के ही आम बाजार में आ जाए। ऐसे चुनावी मौसम में उन्हें हर माँ में अपनी मां नजर आती है और हर बेटी खुद की बेटी दिखाई देती है। फिर अगले पांच सालों तक मां बेटी की सुध नहीं ली जाती है। इससे नाराज होकर सूर्य देवता कहर बरपाते हैं, साथ ही पवन देवता भी अपना गुस्सा दिखाते हैं, चुनाव के मौसम में तेज गर्म हवाएं चलाते हैं।
कितनी कोशिश कर लो लेकिन सालों जो आदमी ऑफिसर- मंत्रालय के चक्कर लगाते हैं उनके मुकाबले यह नेता दो परसेंट भी पसीना नहीं बहाते हैं।
श्रीमती जी बोल उठी- "नेताओं के घर नौकर होते हैं लेकिन अपने घर के काम हमें खुद करने होते हैं।"
मैंने कहा- सो तो है, हम ठहरे मध्यवर्गीय परिवार के लोग। मध्य का मतलब समझती हो ना मध्य मतलब बीच के। वो बीच के सोचकर लिंग परिवर्तन न कर देना बस जो समझा रहे वो समझ लेना। ना अमीर ना गरीब, ऐसे बीच के जिन्हें अपने काम खुद करने होते हैं, जिन्हें महंगाई की मार भी इतनी खानी पड़ती है, कि वह नौकर रखने के लिए रोते हैं।
श्रीमती जी बोल उठी- "नेताओं के भाषण सुनकर दिमाग तुम्हारा खराब हुआ, गोल गोल बातें न ज्यादा बनाओ, जाकर गैस सिलेंडर भरवा लाओ वर्ना दोपहर का खाना जाकर किसी होटल से लेकर आओ।" 
पहले होटल का हिसाब लगाया फिर दो बाल्टी पानी से नहाने का आइडिया सस्ता नजर आया। चुनावी मौसम में गैस सिलेंडर का खत्म होना बड़ा दुख दिखाया, सूर्य देव के गुस्से से भी मैं ना बच पाया।

--- जयति जैन "नूतन" -----





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