बाल कहानी:- जासूस दादी और टिनटिन

बाल कहानी:- जासूस दादी और टिनटिन
लेखिका- जयति जैन "नूतन"

दादी मुझे भूख लग रही है खाना दो" स्कूल से आते ही टिनटिन ने घर में शोर शुरू कर दिया, बस्ता सोफे पर और जूते किचिन के बाहर । 
तुम्हारे लिए ही पराठे सेंक रही हूँ, जाओ कपड़े बदलो और समान मत फैलाना" दादी ने कहा ।
मुस्कुराते हुए टिनटिन किचिन से बाहर आया और सारा फैलाया हुआ समान अपनी जगह रख दिया । दादी ने थाली लगा दी, टीवी देखते देखते टिनटिन ने दस मिनट में ही खा ली । दादी अचंभे में थीं कि टिनटिन और इतनी जल्दी खाना ? फिर सोचा कि भूख लग रही होगी ज्यादा, टिफिन देखा तो वो भी खत्म, बिस्किट भी खत्म ।
अच्छा टिनटिन.... सुनो
नहीं दादी अभी नहीं, मुझे खेलने जाना है ।
थोड़ा सुनो तो, खाना तुम्ही ने खाया ना... कह ही रही थीं कि टिनटिन बल्ला लेकर पार्क में पहुँच गया ।
दूसरे दिन भी टिनटिन का यही हाल था, लेकिन तीसरे दिन टिनटिन खेलने नहीं गया बल्कि रुककर दादी से बात करने लगा1
अच्छा दादी, परसों आप क्या कह रही थीं ?
किस वक़्त ?
अरे मैं जब खेलने जा रहा था, तभी ...
परसों की बात तुम्हें आज याद आ रही है ...
हां वो... छोड़ो ये सब पता दादी आजकल मुझे बहुत ही भूख लगने लगी है । होता क्या है, कोई ना कोई टिफिन लेकर नहीं आता तो मेरे साथ खा लेता है ना ।
तुम्हारे साथ ? दादी ने अचंभे में पूंछा ।
हां दादी, मेरे साथ ।
लेकिन तुम्हारी तो आधी कक्षा के लड़कों से लड़ाई है फिर भी तुम्हारे साथ - दादी बात को भांप चुकी थीं ।
देखो दादी, आधी क्लास भी तो रहती है ना और मुझे कल से ज्यादा पराठे रख दिया करो,  यदि किसी ने नहीं खाये तो मैं आधे इंटरवल में खा लूँगा और आधे लौटते समय बस में फिर घर आकर भी" टिनटिन ने आदेश देने वाली भाषा में कहा ।
फिर टिनटिन खेलने चला गया, दादी समझ चुकी थीं कि टिनटिन किसी के लिए कुछ दिनों से खाना लेकर जा रहा है, जिसके चलते वह खुद भूखा रह जाता है । वर्ना टिनटिन ऐसा नहीं कि खुद ही खाने का बोले, टिफिन के दो पराठे तो वो बहुत मुश्किल से खाता है और आज तीनबार खाने को खुद से बोल रहा है ।
दूसरे दिन दादी ने चार पराठे टिफिन में रखे और बिना बताए इंटरवल में स्कूल पहुँच गयीं तो देखा कि टिनटिन सच में पराठे खा रहा है, आधा खाना खाकर टिफिन रख दिया और दोस्तों के साथ स्कूल ग्राउंड में खेलने लगा ।
दादी सोच विचार के बाद, घर लौट आयी कि टिनटिन सही कह रहा था1लेकिन उसका मन नहीं माना, दूसरे दिन वह फिर स्कूल गयी तब भी वही सब हुआ । कुछ दिन बीत गए लेकिन दादी को ये समझ नहीं आ रहा था कि आखिर स्कूल बस में खाना खाने के बाद, घर आकर टिनटिन तुरंत खाना मांगता है, अचानक से इतनी भूख? कहीं कीड़े तो नहीं पड़ गए पेट में ? शायद छुट्टी के समय कुछ होता है ।
टिनटिन के स्कूल से आने के बाद, दादी रोज़ उससे उसके खाने के बारे में पूंछती । दादी ने एक बार फिर स्कूल जाने का निर्णय किया लेकिन इसबार वह छुट्टी के समय स्कूल पहुँची । सड़क के दूसरी तरफ वह एक भिखारी के पास खड़ी हो गयी, टिनटिन स्कूल गेट से बाहर निकला और उसी तरफ आने लगा । दादी को लगा कि उसे टिनटिन ने देख लिया शायद, तो वह वहां से जल्दी निकली । इस बार भी दादी को सच पता नहीं लगा, घर आकर वह ये सोचती रही कि टिनटिन पूँछेगा तो क्या जबाब देगी लेकिन टिनटिन रोज़ की तरह मस्त मौला था क्योंकि उसने दादी को देखा ही नहीं था ।
दादी ने टिनटिन के माता पिता, जो दोनों की नौकरी करते थे जिसकी वजह से टिनटिन दादी के पास अलग शहर में रहता था" तो दादी ने उन्हें यह बात बताई तो वह भी चिंतित हो उठे कि स्कूल के बाहर टिनटिन क्यों निकला जबकि बस तो स्कूल के अंदर ही खड़ी होती है । उन लोगों ने एक बार फिर दादी को स्कूल जाने को कहा, कुछ दिन बाद दादी फिर जासूसी करने पहुंची ।
इस बार पेड़ के नीचे बैठे भिखारी के पीछे बनी दुकानों के पास जा खड़ी हुई । तब फिर छुट्टी के समय टिनटिन स्कूल से निकला और उस भिखारी के पास आया- बाबा ये लो आज का खाना, कल आऊँगा और भूख तो नहीं लगती बता दो तो ले आऊंगा ।"
नहीं बेटा, इतना ही बहुत है । अच्छे से सड़क पर किया करो, तुम्हारे स्कूल की बस गेट तक आ गयी जाओ अब तुम" भिखारी ने जबाब दिया ।
दादी की खुशी से आंखें छलक उठीं, अब उन्हें टिनटिन से पहले घर पहुँचना था तो उन्होंनें टैक्सी वाले को दुगने पैसे दिए और टिनटिन से पहले घर आकर किचिन में खाना बनाने लगीं । टिनटिन स्कूल से आया और रोज़ की तरह अपने कामों में लग गया । उस दिन के बाद दादी ने फिर कभी उससे टिफिन का जिक्र नहीं किया ।

--- जयति जैन "नूतन" ----

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