मेरी पहली लघुकथा - जयति जैन "नूतन"

लघुकथा= अपाहिज
(जयति जैन "नूतन" )
शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ न  होना ही सिर्फ अपाहिज नहीं होता, संपूर्ण होने के बाद जब स्वाभिमान खत्म हो जाता है, तब असल में अपाहिज होता है इंसान !
निशा भी अपाहिज हो चुकी थी, ऐसे लोगो के बीच थी जहा उसका स्वाभिमान दो कौडी का नहीं बचा था ! हज़ार बातें सुनने के बाद भी निशा घर नहीं छोड़ पा रही थी, क्युकिं खुद के पैरों पर कुल्हाडी उसने खुद मारी थी नौकरी छोड़कर !
उसके सपनों का त्याग उसे जीने नहीं देना चाहता था, कोई कदर करने वाला नहीं था इसलिये निशा ने एक रोज़ अपने टूटे स्वाभिमान के साथ खुद को खत्म कर लिया ! किसी को भनक तक नहीं लगी,
जब नौकरानी की जरुरत हुई घर में तब अहसास हुआ कि कितने काम की थी वो निशा, जो टूटे कांच की तरह चुभती रही सभी को !
अब लोग उसकी तस्वीर के आगे आंसू बहाकर दुख जता रहे थे और वह
मुस्कुरा रही थी, अपाहिज ना होने के अहसास ने उसका स्वाभिमान लौटा दिया था, मरकर !

लेखिका- जयति जैन (नूतन), रानीपुर झांसी उ.प्र.

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